क्षेत्र के कई पयर्टन स्थल उपेक्षा के शिकार,वर्षों पूर्व हुई घोषणाये पर सरकारों ने नहीं दिया ध्यान—

पखांजूर से बिप्लब कुण्डू-15.6.22

क्षेत्र के कई पयर्टन स्थल उपेक्षा के शिकार,वर्षों पूर्व हुई घोसणाएं पर सरकारों ने नहीं दिया ध्यान—

पखांजूर–
कांकेर जिले में भानुप्रतापपुर क्षेत्र अपनी खूबसुरती को लेकर एक विशेष पहचान रखता हैं। परन्तु यहाँ के पर्यटन स्थलों को वह दर्जा नहीं मिल पाया जिसके ये हकदार हैं। यहां के कई पर्यटन स्थल लगातार उपेक्षा का शिकार हो रहें है, ग्रामीणों की मांग व मंत्रियों की घोसणा करने के बावजूद यहां पर्यटन को लेकर कोई भी विकास दिखाई नहीं देता हैं। नगर से महज ही कुछ दूरी पर स्थित देवधारा जलप्रपात पेड़-पौधे, नदी एवं चट्टानों से घिरे होने के कारण मनमोहक दृश्यों से भरपूर है। यह पर्यटन स्थल के रूप में नगर सहित अंचलवासियों के लिए आकर्षण का केन्द्र है। इस स्थल की अपनी एतिहासिक एवं धार्मिक मान्यता भी है।
विकासखण्ड भानुप्रतापपुर एवं दुर्गकोंदल के अंतर्गत देवधारा, गढ़ बांसला, पल्लामाड़ी, सोनादाई, खंडीघाट आदि मशहूर पर्यटन स्थल हैं। किन्तु यहां पर सुविधाओं के आभाव में लोंगो का आना जाना कम होता जा रहा हैं। मंदिर और प्रकृतिक स्थल होने के कारण यहां कि खूबसूरती देखते ही बनती हैं। नवरात्री, शिवरात्रि, बारिश व ठंड के समय यहां पर पर्यटकों व श्रद्धांलुओं कि भारी भीड़ भी देखी जा सकती हैं। ग्राम पंचायत कुल्हाड़कट्टा के आश्रित ग्राम रानवाही से लगे हुए देवधारा को प्रचीन काल से देवदहरा के नाम से जाना जाता है। ग्रामीण जगदू कोर्राम व ग्रामीण चमन सिंह, रामकृष्णा उइके, षिवप्रसाद पटेल, भूपेष पटेल आदि ने बताया कि यह स्थल वर्षों से देव स्थल व पर्यटन स्थल के रूप में क्षेत्र में प्रख्यात हैं। लेकिन मूलभूत सूविधा का अभाव होने के चलते धीरे-धीरे पर्यटकों का आना कम होता जा रहा है।
ज्ञात हो कि क्षेत्र के लोग बड़ी संख्या में देवधारा पर पिकनिक आदि के लिए परिवार सहित आते हैं। शिवरात्री के अवसर पर यहां मेले का भी आयोजन किया जाता है। किन्तु शासन-प्रशासन की उपेक्षा के चलते यह स्थल लगातार अपना अस्तित्व खोता जा रहा है। यहां पहुंचने हेतु न तो पक्की सड़क है, न ही पीने योग्य पानी है और न ही किसी प्रकार की भवन व विद्युत व्यवस्था है। जिसके चलते लोगों का यहां पर आना जाना घटता जा रहा है। ग्रामीणों द्वारा कई बार देवधारा को पर्यटन के रूप में विकसित करने कि मांग कि गयी पर भाजपा सरकार में इसके लिए कोई पहल नहीं हुई। सत्ता परिवर्तन होने के बाद ग्रामीण नई सरकार से भी बड़ी उम्मीद लगाए बैठे थे पर अब तक पर्यटन को लेकर इस क्षेत्र में कोई भी विकास कार्य नहीं हुआ हैं।

देवदहरा की धार्मिक व ऐतिहासिक मान्यता:-

बुजुर्गो व ग्रामीणो ने बताया कि देवधारा को पहले आंगा देव के नाम से जाना जाता था। प्राचीन रियासत काल में कांकेर के राजा भानुप्रतापदेव के द्वारा इस स्थल पर मंदिर बनवाकर आंगा देव की स्थापना की गई थी। लेकिन काफी पुराने होने व देखरेख के अभाव में धीरे-धीरे मंदिर जर्जर होकर टूट गया, किन्तु यहां आज भी मंदिर के अवशेष देखे जा सकते हैं। वहीं इस स्थल पर ग्रामीणो द्वारा पुजा-अर्चना व महाशिवरात्री में मेले का आयोजन किया जाता है। आंगा देव के नाम पर ही इस स्थल का नाम देवदहरा के रूप में प्रचलित हुआ है। यहां व्याप्त समस्याओं को लेकर समय-समय पर शासन-प्रशासन को अवगत कराया गया, लेकिन स्थिति आज भी यथावत बनी हुई है। नई सरकार सत्ता में आने से इस क्षेत्र का विकास होने की उम्मीद बनी थी पर अब वो भी टूटती नजर आ रही हैं।

क्षेत्र में पर्यटन की अपार संभावनाएं::-

देवधारा, गढ़ बांसला, पल्लामाड़ी, सोनादाई व खंडीघाट का क्षेत्र वनाच्छादित, चट्टानों एवं छोटी नदीयों से घिरे होने के साथ-साथ दैवीय मान्यताओं के लिए भी प्रसिद्ध हैं। यहां के पर्यटन स्थलों का मनमोहक दृष्य लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। एैसे तो क्षेत्र में साल भर लोगों का आना जाना लगा रहता है, पर बारिश व ठंड के मौसम में यहां भारी तादात में लोग घूमने व पिकनिक मनाने आते हैं। कई बार तो लोगों को भीड़ के चलते यहां जगह भी नहीं मिल पाती है। इन्हीं पयर्टकों के द्वारा इस स्थल पर सुविधा नहीं होने की बात बताई जाती है। जिसके चलते यहां आने वाले पयर्टक स्वयं से समुचित व्यवस्था करके पहुंचते हैं। इन स्थानो पर पर्यटन की अच्छी संभवनाएं हैं किन्तु उपेक्षा के चलते धीरे-धीरे इनका अस्तित्व खतरे में जाता नजर आ रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री, पर्यटन मंत्री के आश्वासन व घोषणा के बावजूद गढ़ बांसला, पल्लामाड़ी, जैसे क्षेत्र पयर्टन का दर्जा नहीं पा सके हैं। जिसके चलते यहां पर आने वाले पयर्टकों एवं श्रद्धालुओं को मूलभूत सूविधाएं भी मुहैया नहीं हो पा रही हैं।

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